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राजू दूसरी क्लास में पढ़ता है। उसकी मैडम ने मक्खियों के कारण फैलने वाले बीमारी को बताया।

ऐसा कभी नहीं हुआ था... धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफ़ारिश के आधार पर स्वर्ग या नर्क में निवास-स्थान 'अलॉट' करते आ रहे थे। पर ऐसा कभी नहीं हुआ था। सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने पलट, रजिस्टर हरिशंकर परसाई

उन्होंने देखा बच्चे पीपल के पेड़ के नीचे खेल रहे हैं। वह विषधर को परेशान कर रहे थे। विषधर कुछ नहीं कर रहा है।

असम विधानसभा में जुमे की नमाज़ का ब्रेक ख़त्म करने पर हंगामा, हिमंत बिस्वा सरमा पर जेडीयू हमलावर

यह कहानी पंचतंत्र या ईसप की सूत्र कथाओं की तरह है, लेकिन मौजूदा दौर में भोगवादी (हेडोनिस्ट या फिलिस्टिनिस्टिक कंज़्यूमरिज़्म) मानसिकता की वजह से अपनी स्वतंत्रता खोकर ग़ुलाम हो जाने की प्रवृत्ति पर यह एक स्मरणीय टिप्पणी है.

चार मित्र व शिकारी- हितोपदेश की प्रेरक कहानियां

वेद गर्मी की छुट्टी में अपनी नानी के घर जाता है। वहां वेद को खूब मजा आता है , क्योंकि नानी के आम का बगीचा है। वहां वेद ढेर सारे आम खाता है और खेलता है। उसके पांच दोस्त भी हैं, पर उन्हें बेद आम नहीं खिलाता है।

वह इस समय दूसरे कमरे में बेहोश पड़ा है। आज मैंने उसकी शराब में कोई चीज़ मिला दी थी कि ख़ाली शराब वह शरबत की तरह गट-गट पी जाता है और उस पर कोई ख़ास असर नहीं होता। आँखों में लाल ढोरे-से झूलने लगते हैं, माथे की शिकनें पसीने में भीगकर दमक उठती हैं, होंठों कृष्ण बलदेव वैद

चूहे ने एक बार फिर कनान को मेंढक से बचाया और उसे एक जादुई पेड़ के पास ले गया जिसकी शाखाएँ नीले आकाश तक पहुंचती थीं । वापस गुफा में, जब बाघ ने देखा कि कानन गायब है, तो वह बहुत क्रोधित हुआ। आकाश में “का संगी ” नाम की एक देवी ने कनान को आश्रय दिया। दूसरी ओर का संगी को मेंढक की जादुई खाल के बारे में पता चला और उसने उसे जला दिया। जादूगर मेंढक का संगी से लड़ने के लिए आकाश में आया। 

उन हिरणियों के पैरों से विशाल को चोट लगी, वह रोने लगा।

(एक) रज्जब क़साई अपना रोज़गार करके ललितपुर लौट रहा था। साथ में स्त्री थी, और गाँठ में दो सौ-तीन सौ की बड़ी रक़म। मार्ग बीहड़ था, और सुनसान। ललितपुर काफ़ी दूर था, बसेरा कहीं न कहीं लेना ही था; इसलिए उसने मड़पुरा-नामक गाँव में ठहर जाने का निश्चय किया। वृंदावनलाल वर्मा

भुवाली की इस छोटी-सी कॉटेज में लेटा,लेटा मैं सामने के पहाड़ देखता हूँ। पानी-भरे, सूखे-सूखे बादलों के घेरे देखता हूँ। बिना आँखों के झटक-झटक जाती धुंध के निष्फल प्रयास देखता हूँ और फिर लेटे-लेटे अपने तन का पतझार देखता हूँ। सामने पहाड़ के रूखे हरियाले में कृष्णा सोबती

बाबा भारती और खड़ग सिंह की यह कहानी मनुष्य के भीतर छिपी अच्छाइयों के पुनरुद्धार और दूसरे मनुष्य पर विश्वास की अनश्वरता की अद्भुत लोकगाथात्मक कहानी है.

वह इस समय दूसरे कमरे में बेहोश पड़ा है। आज मैंने उसकी शराब में कोई चीज़ मिला दी थी कि ख़ाली शराब वह शरबत की तरह गट-गट पी जाता है और उस पर कोई ख़ास असर नहीं होता। आँखों में लाल ढोरे-से झूलने लगते हैं, माथे click here की शिकनें पसीने में भीगकर दमक उठती हैं, होंठों कृष्ण बलदेव वैद

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